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Showing posts from October, 2020

लीची के पौधे कैसे लगाए? read article

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राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र ने किसानों को नई विधि से लीची उत्पादन की जानकारी दी है। लीची के पौधे इस तरह लगाएँ :-इसके तहत लीची का पौधा कतार में लगाने का तरीका बताया गया।  केंद्र ने पौधों को पूर्व से पश्चिम दिशा में लगाने की सलाह दी है। नई तकनीक के मुताबिक, एक से दूसरी कतार की दूरी आठ मीटर और एक से दूसरे पौधे को चार मीटर की दूरी पर लगाने का निर्देश दिया जा रहा है। अनुसंधान केंद्र का दावा है कि इस विधि से एक एकड़ में 125 पौधे लगाए जा सकेंगे। वैज्ञानिकों के अनुसार पूर्व से पश्चिम दिशा में लगाने से लीची के हर पौधे को सूरज की रोशनी मिलेगी। इससे पौधा पुष्ट होगा और मजबूत पेड़ तैयार होगा और इस प्रकार पेड़ पर लीची की मिठास और आकार दोनों में वृद्धि होगी। लीची के पेड़ संभावना रहेगी और उसे सौर ऊर्जा मिलती रहेगी। इस विधि से तापमान बढ़ने का भी कम प्रभाव पड़ेगा। को नियमित सूरज की रोशनी मिलने से उस पर कीट का प्रभाव भी कम पड़ने की संभावना रहेगी और उसे सौर ऊर्जा मिलती रहेगी। इस विधि से तापमान बढ़ने का भी कम प्रभाव पड़ेगा।

नींबू की खेती

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Subscribe this channel to get free E-book on latest farming technique भूमि व जलवायु नीबू का पौधा काफी सहिष्णु प्रवृत्ति का होता है, जोकि विपरीत दशाओं में भी सहजता से पनप जाता है। अच्छा उत्पादन लेने के लिए उपोष्ण तथा उष्ण जलवायु सर्वोत्तम मानी गई है। ऐसे क्षेत्र जहां पाला कम पड़ता है, वहां इसको आसानी से उगा सकते हैं। इसकी खेती लगभग सभी प्रकार की मृदाओं में की जा सकती है। इसके पौधों की समुचित बढ़वार एवं पैदावार के लिए बलुई तथा बलुई दोमट मृदा उत्तम है, जिसमें जीवांश पदार्थ प्रचुर मात्रा में उपस्थित हों। इसके साथ ही जल निकास का भी समुचित प्रबंधन हो एवं उसका पी-एच मान 5.5 से 7.5 के मध्य हो। मृदा में 4-5 फुट की गहराई तक किसी प्रकार की सख्त तह नहीं हो, तो अच्छा रहता है। Subscribe this channel to get free E-book on latest farming technique Subscribe this channel to get free E-book on latest farming technique उन्नत प्रजातियां कागजी नीबू की कई प्रजातियां प्रचलित हैं जिनका चयन क्षेत्र विशेष अथवा गुणों के आधार पर कर सकते हैं। कुछ महत्वपूर्ण प्रजातियां हैं: पूसा अभि...

मूली की खेती

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JOIN FREE MOVIES FB PAGE जड़ वाली सब्जियों में मूली एक महत्वपूर्ण एवं शीतलता प्रदान करने, ठंडी तासीर, कब्ज दूर करने एवं भूख बढ़ाने वाली सब्जी है। इसका उपयोग सलाद, अचार तथा कैण्डी बनाने के लिए किया जाता है। बवासीर, पीलिया और जिगर के रोग में इसका प्रयोग अत्यधिक लाभप्रद है। इसमें विटामिन 'ए' और 'सी' तथा खनिज लवण, फॉस्फोरस, पोटेशियम, कैल्शियम इत्यादि पाये जाते हैं। मूली की खेती पूरे भारत में की जाती है। इसकी जड़ों के साथ-साथ इसकी हरी पत्तियां भी सलाद व सब्जी के रूप में प्रयोग की जाती हैं। इसकी खेती पूरे वर्ष की जाती है। इसका उत्पादन मुख्य रूप से पश्चिम बंगाल, बिहार, पंजाब, असोम, हरियाणा, गुजरात, हिमाचल प्रदेश एवं उत्तर प्रदेश में किया जाता है। जलवायु एशियाई मूली अधिक तापमान के प्रति सहनशील है, लेकिन अच्छी पैदावार के लिए ठंडी जलवायु उत्तम होती है। ज्यादा तापमान पर जड़ें कठोर तथा चरपरी हो जाती हैं। यह ठंडे मौसम की फसल है। इसकी बढ़वार हेतु 10 से 15° सेल्सियस तापमान होना चाहिए। अधिक तापमान पर जड़ें कड़ी तथा कड़वी हो जाती हैं। Facebook PAGE FREE M...

लोगनबेरी (Logan berry)

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वास्तव में अधिकांश लोगों ने लोगनबेरी का नाम भी नहीं सुना होगा। इस संकर फल का विकास वर्ष 1881 में हुआ था। यूरोपीय देशों में तो यह फल काफी लोकप्रिय है। भारत में यह फल मात्र अनुसंधान केंद्रों तक ही फिलहाल सीमित है। लोगनबेरी के पौधे अन्य बेरीज के पौधों से अधिक सहिष्णु होते हैं। इन्हें कोई रोग या कीट क्षति नहीं पहुंचाते। फिर भी ये बागवानों में कई कारणों से लोकप्रिय नहीं हो पा रहे हैं। लोकप्रिय न होने के प्रमुख कारण हैं: तुड़ाई एवं सामयिक कार्यों के लिए अधिक श्रम की आवश्यकता और पौधों में कांटों का होना। इसके फल भी पत्तियों में छुपे रहते हैं। इसके अतिरिक्त फल एक साथ नहीं पकते। अतः फलों की तुड़ाई एक बार नहीं हो सकती। यही कारण है कि लोगनबेरी को लोग अपने घर की बगिया में ही लगाते हैं। Follow this channel to gain knowledge on different topics Follow this channel to gain knowledge on different topics लोगनबेरी का विकास ब्लैकबेरी एवं रसभरी के संकरण से हुआ है उपलब्ध साहित्य से पता चलता है कि इस फल का विकास ब्लैकबेरी की अष्ठगुणित किस्म ‘ओंघीबॉग' एवं रसभरी की द्विगुणित किस्म ...

पपीते की खेती (Red lady Taiwan 786)

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For more knowledge follow this channel पपीते का पौधा फलदार वृक्षों में सबसे कम समय में फल देने वाला पौधा है। संभवतः इसीलिये किसानों की पसंद बनता जा रहा है। इसको अमृत घट के नाम से भी जाना जाता है। इसके फल में कई एंजाइम भी पाये जाते हैं, जिनके सेवन से पुराने कब्ज के रोग को भी दूर किया जा सकता है। पपीता प्रजातिः रैड लेडी ताइवान-786 इस प्रजाति में नर व मादा फूल एक ही पौधे पर होते हैं, जिसके कारण शत-प्रतिशत पौधों पर फल बनते हैं। To increase your knowledge join this free youtube channel For more knowledge follow this channel पौध तैयार करना जनवरी में प्रो-ट्रे में कोकोपीट के माध्यम में बीज की बुआई की जाती है तथा बीज के अंकुरण के बाद और रोपाई से पहले 2 बार पानी में घुलनशील खादों को पौधों की जड़ों में दिया जाता है। Join this Youtube channel for more knowledge on daily topics For more knowledge follow this channel पौध रोपाई एवं दूरी जब नर्सरी में पौध लगभग 30-35 दिनों की हो जाए या पौधे की लंबाई 15 से 18 सें.मी. हो जाए तब यह मुख्य खेत में रोपाई योग्य हो जाती है। प...

मटकों में ढींगरी mushroom(oyster mushroom) की खेती ।। Matko me oyster mushroom ki kheti

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  मटकों में ढींगरी मशरूम का उत्पादन Facebook group join kre राजस्थान में मुख्यतः तीन प्रकार के मशरूम की खेती की जाती है। इसमें बटन मशरूम, ढींगरी मशरूम और मिल्की मशरूम शामिल हैं। प्रदेश की जलवायु भिन्न प्रकार की है तथा ऋतुओं के अनुसार वातावरण में तापमान तथा नमी भी अलग-अलग रहती है। इसको ध्यान में रखकर समय-समय पर विभिन्न प्रकार के मशरूमों की खेती की जा सकती है। हमारे देश और कई राज्यों की जलवायु ढींगरी मशरूम के लिए बहुत ही अनुकूल है तथा वर्षभर ढींगरी मशरूम की विभिन्न प्रजातियों की खेती की जा सकती है। ढींगरी या ऑयस्टर मशरूम (प्लूरोटस) सर्वाधिक लोकप्रिय शीतोष्ण एवं उपोष्ण प्रजाति है और विश्व मशरूम उत्पादन में इसका बटन मशरूम व शिटाके मशरूम के बाद तृतीय स्थान है। FACEBOOK MOVIES PAGE ਫੀगरी मशरूम की लगभग 32 प्रजातियां सारे विश्व में पाई जाती हैं। इसमें से लगभग सोलह प्रजातियों का व्यावसायिक तौर पर उत्पादन किया जाता है। इनमें शामिल हैं: प्लूरोटस सेपीडस, प्लूरोटस फ्लोरिडा, प्लूरोटस सजोर-काजू, प्लूरोटस फ्लेबीलेटस, प्लूरोटस ऑस्ट्रीएटस, प्लूरोटस एरीन्जाई, प्लूरोटस स...

कम समय में पकने वाली अंगूर कि नई शंकर किसमें ( angoor ki kheti)

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अंगूर एक लज़ीज़ एवं स्वादिष्ट फल है। इसे ताजा, पेय पदार्थ एवं सोमरस के रूप में किया जाता है। इसके अनेक ओषधिय गुण भी है। देश में अंगूर की उत्पादकता विश्वभर में सबसे ज्यादा है। किसानो को अंगूर की बागवानी से लगभग 5-10 लाख रुपये वार्षिक आय प्रति हेक्टर मिल रहीं हैं। हमारे देश में अंगूर की बागवानी दक्षिण एवं पश्चिम के उष्ण कटिबंधीय प्रांतों जैसे महाराष्ट्र, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, तेलंगाना इत्यादि मे बहुतायत से की जा रही है। उत्तर भारत के उपोसन कटिबंधीय मैदानी क्षेत्रों में भी की जाती है तथा मई और जून में तुडाई की जाती है। इस समय केवल गिने चुने देशों में अंगूर की परिपक्वता आती है अतः आर्थीक दृष्टि से अंगूर की खेती काफी फायदेमंद है एवं उतर भारत में अंगूर उत्पादन  एक विशेष स्थान रखता है। FACEBOOK FREE MOVIES   उपोषण तथा उष्णकटिबंधीय क्षेत्र दिल्ली, उत्तर प्रदेश, हरियाणा और पंजाब में स्थित है। इस प्रकार की जलवायु वाले प्रदेशों में फरवरी मार्च में कलियों का फूटाव शुरू होता है। इस प्रकार की जलवायु वाले प्रदेशों में अंगूर के पकने के समय पूर्व मानसून की बारिश प्राय...