नींबू की खेती

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भूमि व जलवायु

नीबू का पौधा काफी सहिष्णु प्रवृत्ति
का होता है, जोकि विपरीत दशाओं में भी
सहजता से पनप जाता है। अच्छा उत्पादन
लेने के लिए उपोष्ण तथा उष्ण जलवायु
सर्वोत्तम मानी गई है। ऐसे क्षेत्र जहां पाला
कम पड़ता है, वहां इसको आसानी से उगा
सकते हैं। इसकी खेती लगभग सभी प्रकार
की मृदाओं में की जा सकती है। इसके
पौधों की समुचित बढ़वार एवं पैदावार के
लिए बलुई तथा बलुई दोमट मृदा उत्तम है,
जिसमें जीवांश पदार्थ प्रचुर मात्रा में उपस्थित
हों। इसके साथ ही जल निकास का भी
समुचित प्रबंधन हो एवं उसका पी-एच मान
5.5 से 7.5 के मध्य हो। मृदा में 4-5 फुट
की गहराई तक किसी प्रकार की सख्त तह
नहीं हो, तो अच्छा रहता है।
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उन्नत प्रजातियां


कागजी नीबू की कई प्रजातियां प्रचलित
हैं जिनका चयन क्षेत्र विशेष अथवा
गुणों के आधार पर कर सकते हैं। कुछ
महत्वपूर्ण प्रजातियां हैं: पूसा अभिनव, पूसा
उदित, विक्रम, कागजी कला, प्रमालिनी,
चक्रधर, साई सर्बती, जय देवी, पी.के.एम-1,
एन.आर.सी.सी. नीबू-7 और एन.आर.सी.सी.
नीबू-8 इत्यादि। पौधे किसी विश्वसनीय स्रोत
अथवा सरकारी नर्सरी से ही खरीदें। पौधे
खरीदते समय यह भी ध्यान रखें कि वे स्वस्थ
एवं रोगमुक्त हों।

पौध प्रसारण

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नीबू का प्रवर्धन बीज, कलिकाय
एयर लेयरिंग (गूटी विधि) से किया जा -
है। इसके बीजों में बहुभ्रूणता पाई जा
जिसके कारण इसका व्यावसायिक प्र
बीज द्वारा ही अधिक किया जाता है।
बीजों में किसी प्रकार की सुषुप्तावस्थ
पाई जाती है।
कागजी नीबू में गूटी विधि
काफी प्रचलित है। इसके द्वारा कम सम
ही अच्छे पौधे तैयार किए जा सकते है
कार्य के लिए वर्षा वाला मौसम सर्वोत्तम
है। गूटी तैयार करने के लिए पेन्सिल
मोटाई की शाखा (1.0-1.5 सें.मी.),
लगभग एक वर्ष पुरानी हो, का चयन
लें। चयनित शाखा से छल्ले के आका
2.5-3.0 सें.मी. लंबाई की छाल निकाल ले।
छल्ले के ऊपरी सिरे पर सेराडेक्स पाउडर
या इंडोल ब्यूटारिक एसिड (आई.बी.ए.) का
लेप लगाकर छल्ले को नम मॉस घास से ढक
दें। ऊपर से लगभग 400 गेज की पॉलीथीन
को 15-20 सें.मी. चौड़ी पट्टी से 2-3 बार
लपेटकर सुतली अथवा धागे से दोनों सिरों
को कसकर बांध दें। 1.5-2.0 महीने बाद
जब पॉलीथीन में से जड़ें दिखाई देने लग
जाएं तब इस शाखा को पौधे से अलग करके
नर्सरी थैलियों में लगा दें।

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सिंचाई


यदि वर्षा नहीं हो रही हो तो रोपण के
तुरन्त बाद सिंचाई अवश्य करें। इसके पश्चात
मृदा में पर्याप्त नमी बनाये रखें, खासकर पौधों
के रोपण के शुरुआती 3-4 सप्ताह में और
इसके बाद एक नियमित अंतराल पर सिंचाई
करते रहें। पौधों की सिंचाई थाला बनाकर
अथवा टपक सिंचाई पद्धति से कर सकते हैं।
सिंचाई करते समय हमेशा यह ध्यान रखें कि
पानी, पौधे के मुख्य तने के सम्पर्क में न
आए। इसके लिए तने के आसपास हल्की
ऊंची मृदा चढ़ा दें।

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खाद एवं उर्वरक


खाद एवं उर्वरकों की मात्रा देने का
समय और तरीका पोषण प्रबंधन में बहुत
महत्वपूर्ण है। खाद एवं उर्वरकों की मात्रा, मृदा
की उर्वरा क्षमता एवं पौधे की आयु पर निर्भर
करती है। सही-सही मात्रा का निर्धारण करने
के लिए मृदा जांच आवश्यक है। यदि संतुलित
मात्रा में खाद एवं उर्वरक डाली जाए तो अच्छे
उत्पादन के साथ-साथ मृदा के स्वास्थ्य का
भी ध्यान रखा जा सकता है।
खाद तथा उर्वरकों को हमेशा पौधों
के मुख्य तने से 20-30 सें.मी. की दूरी पर
डालना चाहिए। गोबर की खाद की पूरी मात्रा
को दिसंबर-जनवरी में, जबकि उर्वरकों को दो
भागों में बांटकर दें। पहली मात्रा मार्च-अप्रैल
में एवं शेष आधी मात्रा को जुलाई-अगस्त
में दें। नीबू में सूक्ष्म पोषक तत्वों का भी
बहुत महत्व हा अत: इनका कमा क
दिखाई देने पर 0.4-0.7 प्रतिशत जस्ते
फेरस सल्फेट तथा 0.1 प्रतिशत बोरेक्स व
छिड़काव करें।

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कांट-छांट


कागजी नीबू में स्वाभाविक तौर प
कटाई-छंटाई की आवश्यकता नहीं होती है
परंतु रोपण के प्रारम्भिक वर्षों में पौधे क
सही आकार देने के लिए जमीन की सत
से लगभग दो फुट की ऊंचाई तक शाखाउ
को हटाते रहना चाहिए। बाद के वर्षों में ५
सूखी, रोगग्रस्त एवं आड़ी-तिरछी टहनिय
को काटते रहना चाहिए। इसके साथ ह
जलांकुरों की पहचान करके उनको भी हटा दे

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फलों का फटना



कागजी नीबू में वर्षा के मौसम में
अक्सर फल फटने की समस्या देखी जा
सकती है। फल प्रायः उस समय फटते हैं,
जब शुष्क मौसम में अचानक वातावरण
में आर्द्रता आ जाती है। अधिक सिंचाई
या सूखे के लंबे अंतराल के बाद वर्षा
का होना भी फल फटने का मुख्य कारण
है। प्रारंभिक अवस्था में फलों पर छोटी
दरारें बनती हैं, जो बाद में फलों के
विकास के साथ बड़ी हो जाती हैं। इससे
आर्थिक रूप से बहुत अधिक नुकसान
होता है। फलों को फटने से रोकने के
लिए:
उचित अंतराल पर सिंचाई करें
जिब्रेलिक अम्ल 40 पी.पी.एम. या
एन.ए.ए. 40, पी.पी.एम या पोटेशियम
सल्फेट 8 प्रतिशत घोल
छिड़काव अप्रैल, मई एवं जून
मे
करें।

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तुड़ाई एवं उपज

फलों की तुड़ाई का सही समय उगायी
जाने वाली किस्म एवं मौसम पर निर्भर करता

है। कागजी नीबू के फल 150-180 दिनों में
पककर तैयार हो जाते हैं। फलों का रंग जब
हरे से हल्का पीला होना शुरू
हो जाए
तो फलों की तुड़ाई प्रारंभ कर देनी चाहिए। फलों
को तोड़ते समय यह ध्यान रखें कि फलों
के छिलके को किसी प्रकार का नुकसान
न पहुंचे। कागजी नीबू की किस्म, मौसम
और प्रबंधन इत्यादि पर निर्भर करती है।

सामान्यत 1000-1200 फल प्रति पौधा प्रति
वर्ष मिल जाते हैं।

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प्रमुख कीट एवं रोग 


नीबू में कई तरह के कीटों एवं
रोगों का आक्रमण होता है यदि सही
समय पर इनकी पहचान करके उचित
प्रबंधन नहीं किया जाये तो किसानों को बहुत
आर्थिक नुकसान उठाना पड़ता है। कागजी
नीबू में लगने वाले कुछ हानिकारक कीट
एवं रोग निम्नलिखित हैं:

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नीबू तितली (लेमन बटरफ्लाई)



इसकी इल्लियां (इंडिया) मुलायम
पत्तियों के किनारों से मध्य शिरा तक खाकर
क्षति पहुंचाती हैं। कई बार तो ये पूरे पौधे को
ही पत्तीविहीन कर देती हैं। नर्सरी एवं छोटे
पौधों की मुलायम एवं नई पत्तियों पर इसका
प्रकोप बहुत ज्यादा होता है। छोटी अवस्था
में यह कीट, चिड़ियों की बीट जैसी दिखाई
देती है। परंतु बाद में पत्ती के रंग-रूप की
हो जाती है, जिससे यह बहुत कम दिखाई
देती है। इस कीट का प्रकोप वर्षा के मौसम
(जुलाई-अगस्त) में अधिक होता है। इसका प्रकोप भी नईपत्तियों पर अधिक होता है, जिससे पौधे की

वृद्धि रुक जाती है। कीटों की संख्या अधिक
होने पर ये लक्षण पत्ती के ऊपरी भाग पर
भी दिखाई देते हैं। यह नीबू में कैंकर रोग के
फैलाव में भी सहायक होता है।

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कीट नियंत्रण


750 मि.ली. ऑक्सीडेमेटान मिथाइल
(मेटासिस्टाक्स) 25 ई.सी. या 625
मि.ली. डाइमेथोएट (रोगोर) 30
ई.सी. या 500 मि.ली. मोनोक्रोटोफॉस
(न्यूवाक्रान/मोनोसिल) 36 डब्ल्यू.एस.
सी. को 500 लीटर पानी में प्रति एकड़
की दर से छिड़कें।
अधिक प्रकोप होने की दशा में प्रभावित
भागों को काटकर नष्ट कर दें एवं

उसके पश्चात दवा का छिड़काव
करें।
बगीचे को हमेशा साफ-सुथरा रखें।

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सिट्रस सिल्ला



इस कीट के शिशु एवं वयस्क दोनों
ही नई पत्तियों तथा पौधों के कोमल भागों से
रस चूसते हैं। इसके परिणामस्वरूप प्रभावित
भाग नीचे गिर जाते हैं और धीरे-धीरे टहनियां
सूखने लग जाती हैं। ये कीट सफेद शहद
जैसा चिपचिपा पदार्थ भी सावित करते हैं,
जिसमें फफूंद का आक्रमण बढ़ जाता है।
यह चिपचिपा पदार्थ जहरीला होता है, जिसके
कारण पत्तियां सिकुड़ जाती हैं और फिर ये
नीचे गिर जाती हैं। इसका प्रकोप भी वर्षा
एवं बसन्त ऋतु में अधिक होता है। यह कीट
'ग्रीनिंग' नामक रोग फैलाने में भी सहायक
होता है।

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कीट नियंत्रण

पौधे के ग्रसित भागों को काटकर दबा
दें अथवा जला दें।
फरवरी-मार्च, जून-जुलाई तथा
अक्टूबर-नवंबर में या कलिका फूटते
ही मोनोक्रोटोफॉस 0.7 मि.ली. या
डायमेथोएट 0.8 मि.ली. या क्विनॉलफॉस
1 मि.ली. या एसीफेट 1 ग्राम दवा
का प्रति लीटर पानी की दर से
छिड़काव करें। आवश्यकता हो तो
यह छिड़काव 15 दिनों के अंतराल
पर पुनः दोहरायें।
कभी भी बगीचे के आसपास मीठे नीम
का पौधा नहीं लगायें।

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Comments

  1. lemon tree flowering in one year how it is possible

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