पपीते की खेती (Red lady Taiwan 786)

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पपीते का पौधा फलदार वृक्षों में सबसे
कम समय में
फल देने वाला पौधा है।
संभवतः इसीलिये किसानों की पसंद बनता
जा रहा है। इसको अमृत घट के नाम से भी
जाना जाता है। इसके फल में कई एंजाइम भी
पाये जाते हैं, जिनके सेवन से पुराने कब्ज के
रोग को भी दूर किया जा सकता है।

पपीता प्रजातिः रैड लेडी ताइवान-786
इस प्रजाति में नर व मादा फूल एक ही
पौधे पर होते हैं, जिसके कारण शत-प्रतिशत
पौधों पर फल बनते हैं।

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पौध तैयार करना

जनवरी में प्रो-ट्रे में कोकोपीट के
माध्यम में बीज की बुआई की जाती है तथा
बीज के अंकुरण के बाद और रोपाई से पहले
2 बार पानी में घुलनशील खादों को पौधों
की जड़ों में दिया जाता है।

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पौध रोपाई एवं दूरी
जब नर्सरी में पौध लगभग 30-35 दिनों
की हो जाए या पौधे की लंबाई 15 से 18
सें.मी. हो जाए तब यह मुख्य खेत में रोपाई
योग्य हो जाती है। पपीते को उचित दूरी पर
लगाना चाहिए।

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सारणी 1. आय-व्यय का विवरण (प्रति एकड़)
दूरी (मीटर)          1.8X1.8
पौधे प्रति एकड़     1250
बाग स्थापना खर्च (रुपये) - 21000
टपक सिंचाई पर खर्च (रुपये) - 20000
वार्षिक खर्च (रुपये)- 40000
उत्पादन (कि.ग्रा./एकड़)- 40166kg
फल विक्रय मूल्य (7 रु./कि.ग्रा.)- 2,84,666
शुद्ध लाभ (रुपये)-  2,03,666

सिंचाई


टपक सिंचाई तकनीक फलदार वृक्षों के
लिये एकमात्र ऐसी विधि है, जिसके माध्यम
से कम से कम पानी एवं खाद से अधिक से
अधिक उत्पादन ले सकते हैं। गर्मी के दिनों
में 1-2 दिनों के अंतराल पर तथा सर्दियों
में 5-7 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करते
रहना चाहिए।
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खाद व उर्वरक


बैड बनाते समय 10-15 कि.ग्रा. गोबर
की खाद एवं 150-200 ग्राम नीम खली प्रति
पौधा मिट्टी में मिला देनी चाहिए। जब पौधा
रोपाई के बाद एक माह का हो जाए तब पौधे
को पानी में घुलनशील
खाद देना प्रारंभ करना
चाहिए। इसके लिए 50
ग्राम नाइट्रोजन, 60 ग्राम
फॉस्फोरस एवं 80 ग्राम
पोटाश प्रति पौधा प्रति
महीने व कम मात्रा में
सूक्ष्म पोषक तत्वों की
आवश्यकता होती है।
खाद की अनुशंसित मात्रा
महीने में 3-4 बार देनी
चाहिए। आरंभिक अवस्था
में कम खाद देनी चाहिए
और जैसे-जैसे समय
बढ़ता जाए वैसे-वैसे खाद की मात्रा को
बढ़ाते रहना चाहिए।

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तुड़ाई व उपज
रोपाई के 9-10 माह बाद फल तुड़ाई
योग्य हो जाते हैं। इसके लिये फलों पर
पीलापन आने के बाद तोड़ते रहना चाहिये,
पौधा क्योंकि अधिक पीलापन आने के बाद फल
तुड़ाई करने पर क्षतिग्रस्त ज्यादा होता है।
इसके बाद अगर फल पर हल्के पीलेपन
रंग के बाद तुड़ाई करके पेपर में लपेटकर बंद
कमरे में रख दें तो 2-3 दिनों में पपीता पूरी
तरह से पक जाता है। प्रति पौधा पपीते की
ग्राम उपज 35-40 कि.ग्रा. औसत उपज पहले वर्ष
में आ जाती है।

पाले से पौधों को बचाना

नवंबर, दिसंबर और जनवरी माह में
पाले से बचाव हेतु एक पंक्ति से दूसरी पंक्ति
के बीच की दूरी पर पानी भर देना चाहिए
और बीच-बीच में जिस दिन मौसम विभाग
के द्वारा पाला पड़ने की संभावना जताई जाए
तब खेत में धुंआ करना चाहिए। धुंआ हवा
की दिशा में ही करना चाहिए।

कीट रोग व उनकी रोकथाम

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तना तथा जड़ गलनः
इसमें भूमि
के तल के पास तने का ऊपरी
छिलका पीला होकर गलने लगता
है और जड़ भी गलने लगती है,
पत्तियां सूख जाती हैं और पौधा मर
जाता है।

रोकथामः पौधों में अच्छे जल
निकास की व्यवस्था हो। पौधों पर एक
प्रतिशत बोर्डो मिश्रण या पानी कॉपर
ऑक्सीक्लोराइड 2 ग्राम/लीटर पानी के
घोल का छिड़काव करें।

डेम्पिग ऑफ: इस रोग में छोटे
पौधे नीचे से गलकर मर जाते हैं।

रोकथामः बीज को सेरेसान एग्रोसन
जी.एन. से उपचारित कर लें।

मोजेक (पत्तियों का मुड़ना):
प्रभावित पत्तियों का रंग पीला हो
जाता है व डंठल छोटा और आकार
में सिकुड़ जाता है।

रोकथामः थायोमिथाक्साम 25
डब्ल्यू.जी. 4 ग्राम/10 लीटर पानी या
इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एस.एल एक मि.ली./
लीटर पानी का घोल बनाकर छिड़काव
करें।

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चेपाः ये कीट छोटे एवं बड़े
पौधों का रस चूसते हैं और विषाणु रोग
फैलाते हैं।
रोकथामः डायमेथोएट 30 ई.सी. या
प्रोपीनोफॉस 50 ई.सी. का एक मि.ली./
लीटर पानी का घोल बनाकर छिड़काव
करें।

लाल मकड़ी: यह कीट पौधे की
पत्तियों एवं फलों की सतह को नुकसान
पहुंचाता है। इसके कारण पत्तियां पीली
पड़कर लाल भूरे रंग की हो जाती हैं।
रोकथामः डाइकोफाल एक मि.ली./
लीटर पानी का छिड़काव करें।



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