लोगनबेरी (Logan berry)
वास्तव में अधिकांश लोगों ने लोगनबेरी का नाम भी नहीं सुना होगा। इस संकर फल का विकास वर्ष 1881 में हुआ था। यूरोपीय
देशों में तो यह फल काफी लोकप्रिय है। भारत में यह फल मात्र अनुसंधान केंद्रों तक ही फिलहाल सीमित है। लोगनबेरी के पौधे
अन्य बेरीज के पौधों से अधिक सहिष्णु होते हैं। इन्हें कोई रोग या कीट क्षति नहीं पहुंचाते। फिर भी ये बागवानों में कई कारणों से
लोकप्रिय नहीं हो पा रहे हैं। लोकप्रिय न होने के प्रमुख कारण हैं: तुड़ाई एवं सामयिक कार्यों के लिए अधिक श्रम की आवश्यकता
और पौधों में कांटों का होना। इसके फल भी पत्तियों में छुपे रहते हैं। इसके अतिरिक्त फल एक साथ नहीं पकते। अतः फलों की
तुड़ाई एक बार नहीं हो सकती। यही कारण है कि लोगनबेरी को लोग अपने घर की बगिया में ही लगाते हैं।
लोगनबेरी का विकास ब्लैकबेरी एवं
रसभरी के संकरण से हुआ है
उपलब्ध साहित्य से पता चलता है कि इस
फल का विकास ब्लैकबेरी की अष्ठगुणित
किस्म ‘ओंघीबॉग' एवं रसभरी की द्विगुणित
किस्म ‘रैड एंटवर्प' के संकरण से हुआ।
यह एक षटगुणित फल है। इसका विकास
सांताक्रूज, कैलिफोर्निया में अमेरिका के
प्रसिद्ध जज एवं बागवानी विशेषज्ञ, जेम्स
हार्वे लोगन द्वारा किया गया था। ऐसा बताय
जाता है कि लोगन अपने घर की बगिया में
लगी ब्लैकबेरी की किस्मों से संतुष्ट नहीं थे
इसलिए उन्होंने ब्लैकबेरी की दो किस्मों में
संकरण करवाया ताकि ब्लैकबेरी की कोड
अच्छी किस्म विकसित हो सके। इस तरह से
तैयार पौधे को उन्होंने वही घर की बगिया में लगे लाल रसभरी के पौधों के पास में
लगाया। ये एक ही समय पुष्पित एवं फलते
थे। उनके प्राकृतिक संकरण से कुछ बीज मिले
जिन्हें लोगन ने एक खेत में बोया। उन्होंने
पाया कि जो पौधे उगे उनमें से 50 ब्लैकबेरी
जैसे थे परंतु वे बड़े एवं ओजस्वी थे। इन्हीं
का नाम लोगनबेरी रखा गया। लोगनबेरी की
मूल संतति को 1897 में यूरोप से आयातित
किया गया। 1933 में इसी से कांटेरहित
लोगनबेरी 'अमेरिकन थॉर्नलेस' उत्परिवर्तन
द्वारा विकसित की गई।
अब लोगनबेरी को रूबस वंश के साथ
कई नए संकरों के विकास के लिए प्रयुक्त
किया गया है। इससे ब्यासनबेरी (लोगनबेरी
x रसभरी x ब्लैकबेरी), सांतियम ब्लैकबेरी
(लोगनबेरी x कैलिफोर्निया ब्लैकबेरी) एवं
ओलालीबेरी (ब्लैक लोगन x यंगबेरी) नए
संकर फल विकसित हुए हैं।
संघटन, पौष्टिक मान एवं उपयोग
लोगनबेरी के फल प्रोटीन एवं कार्बोहाइड्रेट्स
के अच्छे स्रोत माने जाते हैं। इसके फल खाद्य
रेशा एवं कैल्शियम, पोटेशियम तथा विटामिन
सी के बहुत अच्छे स्रोत हैं (सारणी-1)।
अन्य बेरीज के मुकाबले विटामिन सी की
मात्रा अधिक होने के कारण ब्रिटिश नेवी के
नाविक स्कर्वी रोग से बचाव के लिए 20वीं
सदी में इसे विटामिन सी के स्रोत के रूप
में
प्रयुक्त
करते थे। ब्रिटिश लोग 18वीं सदी
तक लाइम को विटामिन सी की कमी की
पूर्ति के लिए उपयोग करते थे। कोलेस्ट्रॉल न
होने के कारण यह दिल के रोगियों के लिए
अति उत्तम माने जाते हैं।
लोगनबेरी के फलों को अधिकतर ताजा
ही खाया जाता है। कई देशों
में इससे कई मूल्यवर्धित उत्पाद
जैसे-जैम, जैली, सीरप, सुरा
आदि भी विकसित किए गए
हैं। कई व्यंजनों में इसे रसभरी
या ब्लैकबेरी की जगह प्रयोग
कर सकते हैं। इसके अतिरिक्त
लोगनबेरी को विविध प्रकार
के पेयों में मिश्रित किया जाता
है। 'मिल्क शेक' में सुवास
के लिए लोगनबेरी का सीरप
प्रयुक्त किया जाता है। कुछ
देशों में एल्कोहलिक पेयों में
लोगनबेरी का सीरप मिलाकर
पेयों में नया स्वाद एवं सुवास तैयार किया
सधाई एवं काट-छांट
लोगनबेरी के पौधे लगभग 10 केन्स
(लताएं) पैदा करते हैं। लताएं रसभरी की
तरह ऊपर की तरफ वृद्धि न करके ब्लैकबेरी
की तरह फैलती हैं। लोगनबेरी को तारों के
जालों पर 'पंखे' के आकार में साधित किया
जाता है। इसके लिए तारों का 6 फीट दूरी
पर लगे खंभों पर जाल बिछाया जाता है और
तारों के बीच 12 सें.मी. की दूरी रखी जाती
है। धरातल से तार लगभग 3 फीट ऊंचाई
पर होने चाहिए। लोगनबेरी की लताओं
को जितना चाहे फैलने देना चाहिए, परंतु
मानकीकृत ऊंचाई 6 फीट है। इसकी लताओं
को दीवार के सहारे भी साधित किया जाता
है। पौधों से निकलने वाले प्ररोहों को लगातार
हटाते रहना चाहिए। पुरानी लताएं दो वर्ष
बाद मर जाती हैं। अतः जब वे रोगी हो
जाएं या जब वे तुड़ाई को बाधित करें तो
उन्हें काट देना चाहिए।
कीट, पक्षी, रोग एवं उनका प्रबंधन
लोगनबेरी के पौधे अन्य बेरीज के पौधों
से अधिक सहिष्णु होते हैं। इनके पौधों एवं
फलों को कुछ कीट व रोग क्षति पहुंचाते हैं,
जनका विवरण निम्नलिखित है:
प्रमुख कीट एवं पक्षी
पक्षीः
लोगनबेरी को सर्वाधिक क्षति
पक्षी पहुंचाते हैं। वे अपनी चोंच से पके
फल को खा जाते हैं। पक्षियों से रोकथाम के लिए झाड़ी के ऊपर जालीदार नेट लगाना चाहिए।
एफिडः
पत्तियों से रस चूसकर एफिड
उन्हें क्षतिग्रस्त करते हैं। एफिड की रोकथाम
के लिए किसी सर्वांगी कीटनाशी का प्रयोग
करना चाहिए। इसके अतिरिक्त गेंदे के पौधों
का रोपण भी लाभकारी होता है।
पादप प्रवर्धन
लोगनबेरी के नए पौधे का प्रवर्धन
बीज एवं शिरा व साधारण दाब कलम की
विधियों द्वारा किया जाता है। प्राकृतिक तौर पर
लोगनबेरी स्वयं ही प्रवर्धित होती रहती है।
परिपक्वता, तुड़ाई एवं उपज
लोगनबेरी के पौधे में 2 माह बाद
फल लग जाते हैं। इसके फल, ब्लैकबेरी
एवं रसभरी से पहले (मई के प्रारंभ में)
पकना शुरू हो जाते हैं। यही कारण है कि
इस फल का बाजार में अधिक मूल्य मिल
जाता है। फलों में जब लाल की बजाय
गहरा-बैंगनी रंग विकसित हो तभी इन्हें
तोड़ना चाहिए। प्रति झाड़ी/वर्ष लगभग 7-8
कि.ग्रा. फल मिल जाते हैं। लोगनबेरी के
पौधे लगभग 15 वर्षों तक फसल देते हैं।
ये स्वयं ही प्रवर्धित होते हैं। अगेती तैयार
होने के कारण, फलों का बड़ा एवं लुभावना
आकार, रंग, श्रेष्ठ गुणवत्ता एवं आकर्षक
सुवास अच्छी परिवहन गुणवत्ता होने के
कारण यह एक अनूठा फल है।
खेती
लोगनबेरी की बागवानी के लिए
ऐसे स्थान का चयन करना चाहिए, जहां
खूब धूप या आंशिक छाया रहती हो। तेज
हवाओं वाले क्षेत्र इसकी खेती के लिए
अनुपयुक्त होते हैं। इसे लगभग हर प्रकार
की मृदा में उगाया जा सकता है। इसके
लिए दोमट मृदा सर्वोत्तम मानी जाती है।
इसे बड़े-बड़े मिट्टी के पात्रों में भी उगाया
जा सकता है।
पादप रोपण 6 से 8 फीट की दूरी
पर किया जाता है। रोपण के लिए अक्टूबर
के अंतिम सप्ताह से मध्य नवंबर तक का
समय उचित होता है।
लोगनबेरी में अधिकतर कार्बनिक
खाद ही डाली जाती है। इसे झाडी के
चारों तरफ 30 सें.मी. के दायरे में डालना
प्रमुख रोग
पर्ण एवं फल चित्तीः
इस रोग
में लोगनबेरी की पत्तियों एवं फलों पर
छोटी-छोटी बैंगनी चित्तियां विकसित
होती हैं। बाद में यह भूरे रंग के
धब्बों में बदल जाती हैं। इन रोगों की
रोकथाम के लिए ग्रसित लताओं को
भूमि के धरातल से काटकर नष्ट कर
देना चाहिए। इसके अतिरिक्त किसी
कॉपरयुक्त कवकनाशी का उपयोग भी
लाभकारी रहता है।
झुलसाः इस रोग में कलियों, गांठों
एवं लताओं पर बैंगनी धब्बे विकसित होते
हैं। ये बाद में सिल्वर रंग के हो जाते हैं।
प्रभावित कलियां एवं शाखाएं बसंत में
मर जाती हैं। इस रोग की रोकथाम के
लिए प्रभावित भागों को काटकर नष्ट करें
एवं कलियां जब 1 सें.मी. आकार की
हो जाएं तो किसी कॉपरयुक्त कवकनाशी
का छिड़काव करें।
ग्रे मोल्डः इस रोग में फलों पर ग्रे
रंग के धब्बे विकसित होते हैं। कभी-कभी
कवक लोगनबेरी में शीर्षारंभी रोग को जन्म
देता है। इस रोग की रोकथाम के लिए मृत
काष्ठ को काटकर नष्ट करें। लोगनबेरी
की कास्त नम एवं आर्द्र स्थानों में न करें।
इसके अतिरिक्त यदि झाड़ी बहुत घनी हो
तो पौधों में हवा के आवागमन के लिए
उचित काट-छांट करें।
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